भारतीय फिल्म- संगीत परंपरा में ग़ज़लों और शायरी का अपना अलग स्थान रहा है । ग़ज़ल लेखन और गायन एक महान काव्य परंपरा के संलयन का प्रतिनिधित्व करते हैं । एक मंत्रमुग्ध कर देने वाली संगीतमय कविता के रूप में भारतीय ग़ज़ल की संस्कृति सभी मानव जाति के लिए एक उम्दा खजाने के रूप में भावों को पोषित करती है, समृद्ध करती है । भारतीय हिंदी फिल्मों के बेहतरीन ग़ज़ल गायकों में बेगम अख्तर , मन्ना डे, तलत महमूद, सुरैया, मोहम्मद रफ़ी, मुकेश, भूपेंद्र सिंह, गुलज़ार साहब, जगजीत सिंह, चित्रा सिंह, पंकज उधास, अनूप जलोटा, पिनाज मसानी, रूप कुमार राठौर, हरिहरन, अनिता सिंघवी आदि जैसे कई बेहतरीन ग़ज़ल लेखक और गायक हुए हैं, जिनकी आवाज़ें भावों के रूप में सीधे लोगों के दिल में उतरती हैं| आज हम एक ऐसे ही बेहतरीन ग़ज़ल गायक के साक्षात्कार को लेकर उपस्थित हुए हैं, जिन्होंने यश चोपड़ा की ‘वीर ज़ारा’ फिल्म में उस्ताद अहमद हुसैन, उस्ताद मोहम्मद के साथ प्लेबैक किया था, और उनका नाम है – “मोहम्मद वकील “





मोहम्मद वकील भारतीय संगीत की दुनिया में एक जाने-माने ग़ज़ल गायक हैं । गुरुशिष्य परम्परा में प्रशिक्षित (शिक्षक-शिष्य परंपरा), उन्होंने खुद को एक उस्ताद के रूप में तेजी से परिपक्व किया है | वे गायन की अपनी कला में पेशेवर हैं जो अपने काव्य छंदों को बड़ी सटीकता के साथ व्यक्त करते हैं, सहयोग करते हैं। पांच साल की उम्र से पहले ही उनका अपने गायन कौशल के प्रति लगाव देखा गया था । उनका पहला मंच प्रदर्शन 1982 में एक बाल कलाकार के रूप में हुआ और उसके बाद उन्होंने संगीत को पेशेवर रूप से अपनाने का दृढ़ निर्णय लिया।
उनकी गायन प्रतिभा को कठोर प्रशिक्षण द्वारा पोषित की गयी है | रियाज़ की अगर बात करें तो बचपन से ही अपने मामा, प्रसिद्ध ग़ज़ल उस्ताद उस्ताद मोहम्मद हुसैन और उस्ताद अहमद हुसैन द्वारा प्रदान किए गए बहुत ही सक्षम मार्गदर्शन और निरंतर प्रेरणा के अधीन थे, जिनका वकील बनाने में एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।

उनके द्वारा गए गए अलबमों में सपने , कसक , कह दो कह दो , गुज़ारिश मौला का दरबार, तेरा ख्याल , हम तुम साथ, वजूद , प्यार मत रखना नज़राना प्रमुख हैं ।
1 – गजल-क्षेत्र में उस्ताद होने की परिभाषा क्या है ? क्या “उस्ताद”शब्द की परिपक्वता की कोई नियम-रेखा है ?
उत्तर : उस्ताद का संगीत के क्षेत्र में उस्ताद की उपाधि पाना, संगीत क्षेत्र के दिग्गज कलाकार जिनको संगीत का बहुत ज्ञान होता है और कई सालों से वो स्वयं संगीत की साधना कर रहे हैं, ऐसे लोग अगर किसी को यह कहे कि आप उस्ताद है या पंडित है तो फिर उस व्यक्ति को उस्ताद या पंडित की उपाधि जायज होती है। उस्ताद का एक अर्थ यह भी है कि जब वह गाये और गायन के दौरान कोई गलती होने वाली हो, उस गलती को उसी वक्त ठीक करने वाला उस्ताद कहलाता है। उस्ताद स्वयं लोगों को सिखाने के अलावा हमेशा यह सोचे कि मेरा सिखना खत्म नहीं हुआ, यही उस्ताद शब्द की परिपक्वता की नियम रेखा है।
2 . आप जयपुर, राजस्थान की शास्त्रीय-ग़जल परंपरा में पले-बढे हैं। एक पाठक के रूप में हम आपसे जानना चाहेंगे कि कला और संगीत के माहौल में बच्चों का पलना और किस तरीके से सामान्य परिवारों से अलग होता है ? उस माहौल में ऐसी कौन सी बात है जो मनुष्य के भावनात्मक विस्तार को बढ़ावा देती है ? यह प्रश्न तकनीकी विस्तार-क्रम में भावनात्मक हृास से सम्बन्धित है ?
उत्तर : मैं बहुत ही सौभाग्यशाली हूँ कि जिस परिवार में मेरी पैदाईश हुई वो एक ऐसा परिवार है जहाँ सुरों की इबादत होती चली आ रही है। यह छठी पीढ़ी है जिसमें मैं गा रहा हूँ। हमारे सभी बुजुर्गों ने भारतीय संगीत की सेवा की है। मेरे दादा स्वर्गीय उस्ताद मोहम्मद इस्माईल और नाना स्वर्गीय उस्ताद अफ़जल हुसैन अपने जमाने के उन कलाकारों में थे जिनका लोहा उस्ताद अमीर खान साहब और उस्ताद बड़े गुलाम अली साहब ने भी माना था। माहौल का इन्सान के दिमाग पर बहुत गहरा असर होता है, अगर आप संगीत परिवार से हैं तो आपको हर समय संगीत का वातावरण मिलता है जिससे आपके दिलो दिमाग पर वो चीज स्वतः ही आपको कार्यरत रखती है और समय-समय पर आपको संगीत का ज्ञान मिलता रहता है, लेकिन जो लोग संगीत परिवार से नहीं होते हैं उनको एक अच्छा उस्ताद/गुरू तलाशना पड़ता है और संगीत का माहौल भी तलाशना पड़ता है। संगीत की जो तकनीकियाँ /बारीकियाँ सीखने में एक उम्र गुजर जाती है। संगीत का ज्ञान आखरी सांस तक लेना पड़ता है।
3 . ग़ज़ल गाने और ग़ज़ल लिखने में क्या अंतर है ? यह प्रश्न उन युवाओं से सम्बंधित है जो इस क्षेत्र में अपना भविष्य देखते हैं ..
ग़ज़ल लिखने वाला शायर है , जिसको शायरी के पूरे व्याकरण सीखने पड़ते हैं । रदीफ़, क़ाफ़िया, बहर, रुकुन्द आदि । ग़ज़ल गाने वाले को उर्दू सीखनी जरूरी वैसे ही होती है जैसे कि संगीत की शिक्षा होती है । ज्यादा अच्छा है कि अगर ग़ज़ल गाने वाले शायरों कि शोहबत में बैठें तो उनको यह पता होगा कि किस शब्द को किस तरह से गाना है और उसको उसके भाव के अनुरूप पेश करना है|
4. ग़ज़ल की रूह जवान और परिपक्व होती है, ज़ुबान मीठी और छली होती है, ऐसा लोग मानते हैं । लोग यह भी कहते हैं कि दर्द में ग़ज़ल की तासीर शराब-सी होती है ? क्या ग़ज़ल में दुआ भी होती है ?
ग़ज़ल किसी भी विषय पर लिखी जा सकती है । इसमें चाहे अपने महबूब की तारीफ हो , सामाजिक मसाइल हो, दुआ हो, जैसे उर्दू के बहुत बड़े शायर , अल्लामा इक़बाल की लिखी हुई दुआ जो बहुत प्रसिद्ध है , “लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी ,ज़िन्दगी शम्मा की सूरत हो खुदाया मेरी ” न जाने ऐसी कितनी दुआएं हैं जो लिखी जा चुकी हैं ।
5. आप गायन में कई दिग्गजों से मिले हैं और उन्होंने आपकी गायकी की प्रशंसा की है ।लेकिन ऐसे वे कौन हैं, जिन्हें आप अपना उस्ताद मानते हैं और उनसे प्रेरित हैं ।
मैं बहुत ही खुशनसीब हूँ कि संगीत के दिग्गज़ कलाकारों के साथ काम करने का मौका मिला, जिनमे श्री जगजीत सिंह, पंकज उदास जी , सोनू निगम जी , अनूप जलोटा जी , तलत अज़ीज़ जी , कविता कृष्णमूर्ति जी , सुनिधि चौहान जी , श्रेया घोषाल जी ,भूपेंद्र मितली जी , और उदित नारायण जी इत्यादि हैं । जिन महान विभूतियों के सामने मुझे प्रस्तुति देने का अवसर मिला , उनमें पंडित जसराज जी , हरी प्रसाद चौरसिया जी, लता जी , नौशाद साहब , ख़य्याम साहब और ओ.पी. नय्यर जी आदि हैं । लेकिन मैं विशेष रूप से कहना चाहूंगा कि जगजीत सिंह साहब और पंडित हरी प्रसाद चौरसिया जी ने मुझे बहुत प्रोमोट किया है । मैं अपने उस्ताद – मोहम्म्द हुसैन साहब और गुरु अहमद हुसैन और जगजीत सिंह साहब से बहुत प्रेरित हूँ|
6. वर्तमान में पर्यावरण, स्त्री-सम्बंधित और बच्चों से सम्बंधित अनेकानेक चिंतनीय मुद्दे चल रहे हैं । समाज की पीड़ा हिंदी कविताओं के माध्यम से सामने लायी जाती है , क्या ग़ज़ल के माध्यम से भी सामाजिक क्रांति या जागरण की दिशा में काम किये जा सकते हैं ?
ग़ज़ल शायरी के माध्यम से सामाजिक क्रांति, जागरण, स्त्री और बच्चों जैसे अनेक विषयों पर बात कही जा सकती है | संगीत के माध्यम से भी समय समय पर पीड़ा कम करने के लिए गाने बनाये गए हैं ,जैसे कोविड के लिए 2 गाने मैंने गए , एक गाना उदित नारायण जी और एक गाना टाइम्स ऑफ़ इंडिया के साथ ,जिससे लोगों का तनाव कम हो सके | फिल्म म्यूजिक में भी संगीत के ज़रिये , दहेज़ ,बाल – शर्म ,स्त्री शिक्षा आदि पे सांग बने हैं ।
7. जयपुर के लोक -संगीत और ग़ज़ल में क्या जुड़ाव है ? क्या आपने इस जुड़ाव को अपने शब्दों में पिरोया है और अपनी गायकी में आवाज़ दी है ?
लोक-संगीत एक अलग शैली है व ग़ज़ल एक अलग शैली है । बचपन से ही ग़ज़ल शैली से जुड़ाव रहा है जो अब तक है, लेकिन राजस्थानी लोक गीत को भी मैंने अपनी गायकी में ढाला हुआ है । मैं अपने हर कार्यक्रम में केसरिया बालम जरूर गाता हूँ । मेरे यू ट्यूब चैनल पर भी आप केसरिया बालम सुन सकते हैं|
8. ग़ज़ल के सफर में आपने किन -किन चुनौतियों का सामना किया है ?
पश्चिमी संगीत के शोर में ग़ज़ल को कई बार दबाया गया है । मेरे जीवन में ऐसे कई अवसर आये जब मुझे कहा गया कि आप भी वेस्टर्न म्यूजिक चुन लें , लेकिन मैंने अपने संगीत और संस्कृति के साथ समझौता नहीं किया|
10. आप वेब आधारित फिल्मों के जमाने में इन दिनों ग़ज़लों का भविष्य कैसे देखते हैं? क्या फिल्मों के बदलते रूप का असर ग़ज़ल की विधा पर पड़ेगा?
वेब सीरीज में ऐसे कई विषय होते हैं जिनमे ग़ज़ल फिट बैठती है और मुझे ग़ज़ल का भविष्य उज्जवल नज़र आता है । ग़ज़ल गायकी की विधा ऐसी है जो हमेशा कायम रहेगी और युवाओं में भी बहुत सारे ग़ज़ल सिंगर गा रहे हैं ।
11. क्या आप अपने जीवन के सबसे सार्थक पलों को दर्शकों के साथ साझा करना चाहेंगे ?
बचपन में मास्टर मदन स्मृति प्रतियोगिता में छह साल की उम्र में प्रथम पुरस्कार प्राप्त किया, कठिन परिश्रम करके सारेगामा प्रोग्राम तक पहुँचा और फाइनल के साथ मेगा फाइनल जीता ।बीस से ज्यादा एल्बम आ चुके हैं । हाल ही में दादा साहेब फाल्के इंडियन टेलीविज़न अवार्ड मिला है । मेहनत ही ज़िंदगी की सच्चाई है, मेहनत हमेशा करता रहा और जब तक जीवन है, मेहनत करता रहूँगा|




मोहम्मद वकील का बेहतरीन इंटरव्यू
वाकई… कान फाड़ने वाले आज के संगीत ने ग़ज़ल सरीखी सुकून की विधा को नुकसान पहुंचाया है
Thanks