सोशल मीडिया के दौर में आज किसी आम आदमी के अचानक मशहूर हो जाने से आश्चर्य नहीं होता है। हमारे आस-पास ऐसे ही कई उदाहरण होते हैं जो रातों-रात विख्यात हो गए। चाहे वह लक्जरी कार में चलने वाला अमीर व्यक्ति हो या फिर कोई आम रिक्शा चलाने वाला। आज से दश वर्ष पूर्व ऐसा होना शायद ही सम्भव था कि कोई रिक्शेवाला किसी कारण मशहूर हुआ हो। ऐसा होता तो आम लोगों में यह एक सफ़लता की बड़ी मिसाल बन जाती। यदि मैं कहूँ कि ऐसा हुआ है तो क्या आप यह बात मानेंगे? जी हाँ, सही पढ़ रहे हैं आप। सफ़लता की इस कहानी के नायक हैं – भजनगायक रसिक पागल बाबा


पागल बाबा के पिता वृंदावन के निकट एक गाँव के निवासी थे। वह जब वृंदावन आकर बस गए तब 1 जनवरी 1967 को पागल बाबा जन्म एक निर्धन परिवार में हुआ और उनके अन्य भाई-बहन का जन्म भी वृंदावन में ही हुआ। उनका वास्तविक नाम रसिक दास था। वह बताते थे कि उनकी माँ शुरू से मंदिर में भजन गाया करती थीं और जब वह अपनी माँ के गर्भ में थे तब माँ के गायन का असर उन पर भी पड़ा।
बचपन से ही पागल बाबा गाया करते थे। यहाँ तक कि उन्हें कुछ भी बात करनी होती थी तो वह गाकर ही किया करते थे।
जैसे उन्हें खाना खाना है या खेलने जाना होता था तो वह इन बातों को गाकर ही कहा करते थे। शुरू में उनके घरवाले और आस-पास के लोग इससे प्रभावित हुए लेकिन थोड़े ही समय में उन्हें पागल की संज्ञा दे दी गई और जीवन भर उनके साथ रही। वृंदावनवासी होने के कारण श्रीकृष्ण की भक्ति में खुद को खो दिया और उन्होंने धीरे-धीरे अपने अंदर काव्य का गुण भी विकसित कर लिया।
पागल बाबा पहले-पहल भजन गाने के साथ-साथ अपना जीवन यापन करने के लिए रिक्शा चलाया करते थे और जीवन की तमाम कठिनाइयों से जूझकर अपने परिवार का पेट भरा करते थे। फिर उन्होंने हरिदासिय परम्परा के आचार्य गोविंद शरण शास्त्री से दीक्षा ली। वह अक्सर अपने गुरु के सामने कृष्ण भक्ति लीन होकर अचानक भजन गाने लग जाते थे। यह देखकर उनके गुरु ने उनका नाम रसिक दास से रसिक पागल रख दिया। धीरे-धीरे उनके भजन गायन के कारण उनकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल गई। पागल बाबा ने 1996 में पूर्णरूप से संगीत जगत में कदम रखा और टी-सीरीज जैसी म्युजिक कम्पनी के साथ भी काम किया। उन्होंने कई स्वरचित भजन गाए जिनमें करुणामयी कृपामयी मेरी दयामयी राधे, मेरा दिल तो दीवाना हो गया मुरली वाले तेरा, श्री राधा बरसाने वाली जैसे विश्व प्रसिद्घ गीत भी शामिल हैं।




बाबा ने वृंदावन समेत पाँच जगह आश्रमों की स्थापना की और साथ ही अस्पतालों का निर्माण भी कराया। आश्रमों में हर रोज भक्तगण और श्रद्धालुओं की खिचडी सेवा की जाती है, और अस्पतालों में निर्धनों का बहुत कम शुल्क पर उपचार किया जाता है। यदि अस्पताल किसी मरीज को उचित उपचार मुहैया नहीं करा पाता तो आश्रम परिसर अन्य बड़े अस्पतालों से मरीज का उपचार कराने का खर्च उठाता है।
पागल बाबा के शिष्यों में कई उनकी तरह ही विश्वविख्यात भजनगायक भी हुए। इनमें बाबा चित्र विचित्र जी महाराज, बाबा हाउ बिलाउ जी महाराज, मदना पागल, धसिका पागल शामिल हैं।
55 वर्ष की आयु में 4 दिसंबर, 2021 को पागल बाबा श्रीधाम वृंदावन और इस भूमि को छोड़कर स्वर्गवासी हो गए। बाबा के चले जाने से उनके कुछ अस्पतालों कार्य जरूर प्रभावित हुआ लेकिन आज भी लोककल्याण में अग्रणी हैं।

पागल बाबा मंदिर में एक आधुनिक अद्भुत नागर शैली की वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है जो अंदर से बाहर तक सफ़ेद आभा के साथ आश्चर्यजनक लगती है। संगमरमर से निर्मित यह मंदिर 221 फीट ऊंचा और लगभग 150 फीट चौड़ा है।
इस मंदिर के आयोजनों में वर्षोपरांत चलनेवाली कठपुतलियों के खेल का विशेष महत्व है | कठपुतलियाँ भारत के प्रसिद्ध महाकाव्यों – रामायण और महाभारत के दृश्यों को प्रदर्शित करती हैं। इस पवित्र स्थान के निचले हिस्से में कृष्ण लीला, राम लीला और पागल बाबा लीला की इलेक्ट्रॉनिक झाँकी भी उपलब्ध है। पहली मंजिल पर बीचोंबीच एक गोलाकार खिड़की है जिसे इस तरह से निर्मित किया गया है कि यह श्री विष्णु के सुदर्शन चक्र के स्वरुप का आभास कराती है | मंदिर की ऊपरी मंजिल से पूरे वृंदावन को एक बार में देखा जा सकता है।
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